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Mahatma Gandhi : महात्मा गाँधी

आखिर क्यों छोड़ा गाँधी जी ने साबरमती आश्रम

जब बात भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आती हैं, तो महात्मा गाँधी, और पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम अक्षरों की पहली पंक्ति मे आता हैं। बिना इन दो नेताओं के नाम के भारत का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास ही अधूरा रह जाता है।
महात्मा गाँधी का जन्म 02 अक्टूबर 1969 को गुजरात के पोरबंदर मे हुआ था। इनके पिता का नाम – कर्मचंद्र गाँधी व माता का नाम पुतली बाई था। गाँधी जी का पूरा नाम “मोहन दास करम चन्द्र गाँधी था। इनका विवाह कस्तूरबा गाँधी के साथ हुआ था। इनके चार थे पुत्र थे – 1- हीरा लाल 2- मणिलाल 3- रामदास 4- देवदास।
महात्मा गाँधी ने प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर मे प्राप्त की। माध्यमिक शिक्षा राजकोट मे प्राप्त की व उच्च शिक्षा गुजरात के भावनगर मे “सामलदास कालेज” से पूरी की। बैरिस्टर की डिग्री के लिए गाँधी जी ने लंदन के “इनर टेम्पल लॉ कालेज” मे पढ़ाई की, और 1893 मे परीक्षा पास कर बैरिस्टर बनकर भारत आये।

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी जी की ट्रेन यात्रा

1893 मे ही महात्मा गाँधी जी दादा अब्दुल्ला के एक मुकदमा की पैरवी के लिए डरबन, दक्षिण अफ्रीका चले गाये। गाँधी जी गये तो थे लगभग एक-दो वर्ष के लिए, लेकिन वहां रुक गये 22 वर्ष। उम्मीद थी कि मुक़दमा लगभग एक-दो वर्ष मे समाप्त हों जायेगा…..। डरबन मे गाँधी जी लगभग सप्ताह रुकने के बाद गाँधी जी प्रिटोरिया के लिए रवाना हुए, क्योंकि मुकदमा की सुनवाई प्रिटोरिया मे ही होनी थी। प्रिटोरिया जाने के लिए गाँधी जी ने ट्रेन के प्रथम श्रेणी के कोच का टिकट लिया। लेकिन गोरों ने गाँधी जी को ट्रेन से नीचे उतार दिया। गाँधी को रेलवे के प्रतीक्षालय मे जाड़े के मौसम की रात ठिठुरते हुए बिताने पड़ी। जब अगले दिन दूसरी ट्रेन से यात्रा की, तब भी गाँधी जी को प्रथम श्रेणी के कोच से उतार दिया गया। और उन्हे ड्राइवर के पास बैठने को कहा गया। जब गाँधी जी ड्राइवर के पास बैठे तो वहाँ भी उन्हे ट्रेन के पायदान पर बिठाया गया, यह तब हुआ जब गाँधी जी के पास प्रथम श्रेणी का टिकट था। अब गाँधी जी जोहान्सबर्ग पहुँचे। जोहान्सबर्ग में रात को रुकने के लिए गाँधी जी ने होटल में रूम लेना चाहा, लेकिन किसी होटल मे गाँधी जी को रूम नहीं दिया गया, बताया गया कि रूम खाली नही है। अगले दिन गाँधी जी प्रिटोरिया जाने वाली ट्रेन में बैठे। यहाँ भी गाँधी जी के पास प्रथम श्रेणी का टिकट था, लेकिन गोरों ने उन्हें ट्रेन से उतारने की कोशिश की, लेकिन गाँधी जी ने सारे कानूनो का हवाला दिया, और बड़ी मुस्किल से उन्हे यात्रा करने दिया गया।
प्रिटोरिया पहुँचते के बाद सबसे पहले गाँधी जी ने वहाँ रहने वाले भारतीयों के साथ बैठक की। जिसमें उन्होंने अंग्रेजो द्वारा किए जाने वाले अत्याचार का विरोध करने को कहा। अब गाँधी जी प्रिटोरिया में रहने लगे, और दादा अब्दुल्ला के मुकदमें की पैरवी करने लगे। साथ- साथ वहाँ रहने वाले भारतीयों को भी अंग्रेजी अत्याचार का विरोध करने की प्रेरणा देने लगे।
इधर जब मुकदमा समाप्त हुआ, तो गाँधी जी ने भारत वापसी की तैयारी शुरू कर दी। गाँधी जी को जिस दिन वापस होना था, उसकी पूर्व संध्या पर वहाँ के रहने वाले भारतीयों से बात की और कहा कि जो नटाल विधानमंडल मे विधेयक पास होना है, उसका वह विरोध करें। दरअसल  यह विधेयक वहाँ रहने वाले भारतीयों के लिए था, इस विधेयक मे भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने का प्रावधान था। इस मामले पर वहाँ के भारतीयों ने महात्मा गाँधी से प्रार्थना की, कि आप एक माह रुक जायँ और आन्दोलन का नेतृत्व करें। गाँधी जी एक महीना रूकने के लिए तैयार हो गए। रुकना था गाँधी जी को एक महीना, और रुक गए 20 वर्ष। अभी उनकी उम्र 25 वर्ष थी, लेकिन जब भारत वापस आए तब हो गए 45 वर्ष के। दक्षिण अफ्रीका गए थे अपनी युवावस्था में, जब भारत वापस आए तो पहुँच गए वृद्धावस्था की दहलीज पर।
दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन लम्बा चला, और गाँधी जी भारत वापस आए जनवरी 1915 में।

चम्पारण आंदोलन

गाँधी जी जब भारत वापस आए तो भारत की जनता ने गाँधी जी का जोर-शोर से स्वागत किया।भारत आने के बाद गाँधी जी ने अपना पहला आंदोलन 1917 मे बिहार के चम्पारण से प्रारम्भ किया। यहाँ पर तिनकठिया पद्धति थी। जिसके अंतर्गत किसानो को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था। जबकि किसानो को लाभ बहुत ही कम होत था, या फिर वे कर्ज मे ही डूब जाते थे। गाँधी जी का चम्पारण आंदोलन सफल रहा।
इसके बाद अहमदाबाद और खेड़ा आंदोलन हुए। और सफल रहे।

असहयोग आंदोलन

01 अगस्त 1920 को गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। जनवरी 1921 से आंदोलन कि लोकप्रियता देश मे खूब बढ़ी। अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार किया गया, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया, ताड़ी की दुकानों पर धरना दिया गया। 17 नवंबर को “प्रिंस ऑफ़ वेल्स” की भारत यात्रा प्रारम्भ हुई। जिस दिन वे भारत आये उस दिन पूरे भारत मे उनका हड़ताल से स्वागत हुआ। जब वह मुम्बई पहुंचे, उसी दिन गाँधी जी ने एल्फिस्टन मिल के अहाते मे मजदूरों की सभा की। कुल मिलाकर आंदोलन पूरे जोर-शोर पर था।

लेकिन इसी समय 05 फ़रवरी 1922 को चौरी-चौरा काण्ड हो गया, [कुछ श्रोतो मे 04 फ़रवरी 1922] जिसमे कुछ हिंसा भी हुई। चूँकि गाँधी जी का आंदोलन पूरी तरह से अहिंसावादी था, अतः गाँधी जी ने 12 फ़रवरी 1922 को आंदोलन वापस ले लिया।

असहयोग आंदोलन की एक विशेषता यह भी थी,कि जैसे-जैसे समय बढ़ता वैसे – वैसे आंदोलन भी पूरे भारत में लोकप्रिय बनता गया। गाँधी जी अपने समय में भारत के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। सोहन लाल द्विवेदी जी के द्वारा लिखी गयी एक कविता की कुछ लाइन यहाँ पर लिख रहा हूँ, जो गाँधी जी पर ही लिखी गई है, इन पंक्तियों से गाँधी जी की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है-

चल पड़े जिधर दो डग-मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गए कोटि पग उसी ओर।।

द्विवेदी जी के ही शब्दों में एक और लाइन-

तुम बोल उठे, युग बोल उठा, तुम मौन बने, युग मौन बना।
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर, युग कर्म जगा, युग धर्म जगा।।


इसके बाद महात्मा गाँधी ने और भी आंदोलन किये। जिनमे सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन प्रमुख हैं।
  एक लम्बे संघर्ष के बाद भारत को आजादी मिली- वह दिन था 15 अगस्त 1947, जब भारत देश अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त हुआ।

दे दी हमें आजादी, बिना खड़ग, बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।

30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी को नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी।

महात्मा गाँधी जब दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आये थे, वह साबरमती आश्रम मे रुके थे। आइये जानते हैं-साबरमती आश्रम के बारे में-

साबरमती आश्रम

जब गाँधी जी भारत आये तब उन्हे देश की जनता ने हाथों – हाथ उठाया, उनके लिए एक आश्रम कि व्यवस्था की गयी। यह आश्रम 25 मई 1915 को गुजरात के अहमदाबाद में “कोचरब” नामक स्थान पर की गई। बाद में 17 जून 1917 को इसे साबरमती नदी के किनारे स्थानान्तरित किया गया। साबरमती नदी के नाम पर ही इस आश्रम का नाम “साबरमती आश्रम” कर दिया गया। यही आश्रम साबरमती आश्रम के नाम से जाना गया।

साबरमती आश्रम

यह आश्रम गुजरात मे अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे स्थित है। यहीं पर गाँधी जी के लिए एक कुटी बनाई गयी थी। यही साबरमती आश्रम मे गाँधी जी कस्तूरबा के साथ रहते थे। यहीं पर स्वतंत्रता आंदोलन की योजनायें भी बनायी जाती थी। दरअसल यहीं पर देश के स्वतंत्रता सेनानी आते थे, और गाँधी जी के साथ बैठ कर आंदोलन कि योजनाये बनाते थे। यहीं से गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को 78 स्वयं सेवकों के साथ डांडी यात्रा प्रारम्भ की। इसी समय गाँधी जी ने कहा था कि अब, “जब तक वह देश को आजाद नहीं करा देते, तब तक वह साबरमती आश्रम नहीं आयेंगे”। 06 अप्रैल 1930 को उन्होंने नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।
इसके बाद लोगों की गिरफ़्तारियां शुरू हुई। हजारों कि संख्या मे बंदी बनाये गाये। गाँधी जी समेत कई नेता गिरफ्तार हुए, बंदी बनाये गये।

साबरमती आश्रम कैसे जायें

अगर आप साबरमती आश्रम जाना चाहते हैं तो, आपको गुजरात राज्य में अहमदाबाद जाना होगा। अहमदाबाद से साबरमती आश्रम जाने के लिए टैक्सी सुविधा उपलब्ध है।

निकटतम रेलवे-स्टेशन अहमदाबाद व निकटतम एयरपोर्ट अहमदाबाद में ही है।

रूकने के लिए अहमदाबाद में आप किसी भी होटल में रुक सकते हैं।

वर्धा आश्रम

जेल से छूटने के बाद गाँधी जी महाराष्ट्र के वर्धा चले गए। वर्धा को “इन्द्रपुरी” भी कहा जाता है।  यहाँ पर 1936 ईo में जो आश्रम बनाया गया, उसे “सेवाग्राम आश्रम” या “वर्धा आश्रम” के नाम से जाना जाता है। यह आश्रम वर्धा नदी के किनारे है। यहाँ भी आन्दोलन से संबंधित योजनाएँ बनायी जाने लगी।
जब भी आप वर्धा जायें तो वहाँ के “गीताई मन्दिर” भी जा सकते हैं। गीताई मन्दिर में गीता के सभी श्लोक लिखे गये हैं।

वर्धा आश्रम कैसे जाएँ

महाराष्ट्र में वर्धा एक जिला है। वर्धा जाने के लिए निकटतम रेलवे-स्टेशन वर्धा है। निकटतम एयरपोर्ट नागपुर है। नागपुर से वर्धा 80-85 किलोमीटर लगभग है। जो आप सड़क मार्ग से तय कर सकते हैं।

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यहाँ पर दी गई जानकारी, सामान्य जानकारी पर आधारित है। हमारी वेबसाइट aksuhanasafar.com किसी भी तथ्य को प्रमाणित नहीं करती। कृपया अमल करने से पहले सरकारी गजट अवश्य देखें।

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