Mahalakshmi Temple: प्राचीन महालक्ष्मी मन्दिर
भारत एक ऐसा देश है जहाँ धार्मिकता और आस्था के महत्व को अधिक माना जाता है।इस भूमि पर कई मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च और अन्य धार्मिक संस्थाएँ स्थित हैं, जिनमें हर एक ने अपनी विशेषता और महत्त्वपूर्णता के साथ धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण को
बनाए रखा है। इसी कड़ी में इंदौर, जो मध्य प्रदेश का एक प्रमुख नगर है, जहाँ ‘महालक्ष्मी मन्दिर’ माँ “महालक्ष्मी जी” का ऐसा स्थान है जो आस्था और श्रद्धा के साथ भरा हुआ है। आइए जानते हैं, माँ महालक्ष्मी जी के इस मन्दिर के बारे में।
मन्दिर का इतिहास
महालक्ष्मी मंदिर इंदौर का इतिहास प्राचीन है और इसे स्थानीय लोग अपने परम्परागत मूल्यों के साथ जोड़ते हैं। इस मन्दिर को 18वीं सदी में राजा हरिराव होल्कर ने निर्माण करवाया था।
पहले यह तीन तल वाला मन्दिर था किंतु 1933 ईस्वी के लगभग किसी कारण वश मन्दिर में आग लग गयी जिससे मन्दिर को काफी क्षति हुई। कहा जाता है आग लगने के बाद मन्दिर को क्षति तो हुई परंतु मन्दिर में माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा को कोई नुकसान नहीं हुआ। मन्दिर का पुनः निर्माण 1942 ईo में किया गया ।
इसे निर्माण करने का मुख्य उद्देश्य था-नगर को आर्थिक स्थिति में सुधार करना और लोगों को एक सामाजिक और आध्यात्मिक माहौल प्रदान करना ।
मन्दिर की विशेषता
महालक्ष्मी जी के इस मन्दिर को उन्नत वास्तुकला के साथ निर्मित
किया गया है और इसका स्थानीय स्थान और प्राचीनता इसे एक अद्वितीय स्थान बनाते हैं। मन्दिर की प्रमुख स्थापत्य कला की वजह से यह भवानी का सजीव रूप है, जो दर्शनार्थीयों को अद्भुत आत्मा से जोड़ता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर चित्रित मुद्राएँ हैं, और इसे सुंदर संगमरमर से बनाया गया है जो यहाँ आने वालों का स्वागत करते हैं, और धरोहर का अहसास कराते हैं।
मन्दिर में महालक्ष्मी जी के साथ-साथ गणेश, रिद्धि-सिद्धि, शिव और हनुमान जी की प्रतिमा भी हैं।
महालक्ष्मी जी के मन्दिर का धार्मिक महत्व
महालक्ष्मी जी का मन्दिर ऐसी जगह है जहाँ धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक समागम का मिलन होता है। यहाँ हर महीने हजारों भक्त एकत्र होते हैं और माता जी की कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।
मान्यता यह भी है कि यहाँ जो भी भक्त माता जी के सामने शीष झुकाकर मन्नत करता है, उसकी झोली कभी खाली नहीं जाती या कहें कि वह कभी खाली हाँथ नहीं लौटता । माता जी के दरबार में कमल के फूल और पीले चावल चढ़ाए जाते हैं।
मन्दिर में मराठा राजपरिवार विशेषकर राजा जब भी किसी युद्ध में जाते थे या कोई नया फैसला लेते थे तो वह पहले इस मन्दिर में जाकर माता जी के चरणों में शीष अवश्य झुकाते थे।
आज भी इंदौर के व्यापारी और दुकानदार अपना कारोबार करने से पहले इस मन्दिर में आकर मत्था अवश्य टेकते हैं।
मराठी परम्परा के अनुसार इस मन्दिर में माँ महालक्ष्मी जी को साड़ी पहनायी जाती है और श्रंगार किया जाता है, और उसके बाद मराठी परम्परा में माता जी की आरती की जाती है। महालक्ष्मी जी के इस मन्दिर में होने वाले धार्मिक उत्सव और मेले भी इसे एक आनंदमयी स्थान बनाते हैं जहाँ लोग अपने आपको और अपने समाज को धार्मिक उत्सवों के माध्यम से जोड़ते हैं। मन्दिर में दीपावली के दिन भारी संख्या में लोग आते हैं, और माताजी को प्रसाद चढ़ाते हैं, और मन्नत माँगते हैं। महालक्ष्मी जी के दरबार से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटता।
कब जाएँ
वैसे तो यहाँ कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन दीपावली के दिन विशेष महत्व माना गया है, और इस दिन मंदिर 24 घंटे खुला रहता है।
कैसे जाएँ
इंदौर देश के लगभग सभी मुख्य स्थानों से रेल मार्ग, सड़क मार्ग और हवाई मार्ग से जुड़ा है। मन्दिर रेलवे-स्टेशन से लगभग 4-6 किमी की दूरी पर स्थित है।
निकटतम हवाई अड्डा “देवी अहिल्याबाई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा” इंदौर, मध्य प्रदेश है।
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