blog

Ma Vindhyavasini: माँ विंध्यवासिनी मन्दिर

उत्तर प्रदेश में “माँ विंध्यवासिनी” एक ऐसा चमत्कारी मन्दिर जहाँ जाते ही सारे दुःख हो जाते हैं दूर। यह ऐसा अकेला शक्तिपीठ है जहाँ सती जी का कोई अंग भी नहीं गिरा, फिर भी इसे शक्तिपीठ की श्रेणी में रखा जाता है। यद्यपि कुछ जानकार इसे शक्तिपीठ न मानकर सिद्धपीठ मानते हैं। क्योंकि शक्तिपीठ उसे कहा जाता है जहाँ सती जी का कोई न कोई अंग गिरा हो। इस मन्दिर की एक विशेषता और है कि यहाँ जो भी कोई भक्त सच्चे मन से माता जी से माँगता है माता जी उसकी कामना पूरी अवश्य करती हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर माता जी जाग्रत अवस्था में निवास करती हैं। आइए अब जानते हैं विस्तार से।

भारत में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के विन्ध्याचल में बना है माँ विन्ध्यवासिनी मन्दिर। माता जी का निवास विन्ध्य क्षेत्र में होने के कारण ही वह विन्ध्य की वासी मानी गयी। विन्ध्य की वासिनी होने के कारण ही माता जी का नाम “माँ विन्ध्यवासिनी” पड़ा। इसी विन्ध्य क्षेत्र में मंदिर के पास गंगा नदी कल-कल करती हुई प्रवाहित होती है। यह गंगा नदी पहले प्रयागराज (इलाहाबाद) में प्रवेश करती है। और यहीं प्रयागराज (इलाहाबाद) में यमुना के साथ मिलकर “संगम” का निर्माण करती है। पवित्र संगम का निर्माण करने के बाद यही गंगा नदी माँ विन्ध्यवासिनी के धाम पहुँचती है और मंदिर के पास से प्रवाहित होती है।

माँ विंध्यवासिनी सृष्टि के सृजन के समय से हैं विराजमान

माँ विंध्यवासिनी से जुड़ी दो कथाएं प्रचलित है। पहली मान्यता के अनुसार सृष्टि के समय ब्रह्मा जी ने सबसे पहले अपने मन से “मनु” को उत्पन्न किया। मनु ने अपने हाथों से देवी की प्रतिमा बनायीं और उस देवी माँ की पूजा की । उनकी पूजा(तप) से प्रसन्न होकर माता जी ने उन्हें वंश वृद्धि, राजभोग और धन से परिपूर्ण होने का वरदान दिया। उसके बाद माता जी इसी विन्ध्य क्षेत्र में निवास करने लगी। इस प्रकार माँ विन्ध्यवासिनी के सृष्टि समय से ही विन्ध्य क्षेत्र में निवास होने की मान्यता है।

माँ विंध्यवासिनी को नंदजा भी कहा जाता

माँ विन्ध्यवासनी के बारे में दूसरी मान्यता के अनुसार, जब वसुदेव देवकी के आठवें पुत्र “कृष्ण” के अवतार की बारी आई उस समय कंस ने वसुदेव और देवकी को अपने मथुरा कारागार में बंद कर दिया था। भाद्रपद, कृष्ण पक्ष अष्टमी को जब कारागार में वसुदेव देवकी के आठवें संतान के रूप में कृष्णावतार हुआ। उस समय कारागार के सारे पहरेदार सो गए थे। तब भगवान कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने वसुदेव से कहा कि वह हमें गोकुल में यशोदा के घर पहुँचा दें और उनके जो कन्या हुई है उसे यहाँ ले आएं। वासुदेव ने ऐसा ही किया। कृष्ण के प्रभाव से वसुदेव देवकी की हथकड़ी, बेड़ी खुल गयीं, कारागार के दरवाजे खुल गए। वह कृष्ण को यशोदा के पास छोड़कर वह कन्या मथुरा कारागार में ले आए। कारागार में आते ही कारागार के दरवाजे फिर से बंद हो गए और उनके हाथ पैरों में हथकड़ी बेड़ी फिर से पड़ गयी। कन्या के रोने की आवाज सुनकर कंस (कृष्ण के मामा) आया और उसने वह कन्या छीनकर पटकना चाहा, लेकिन वह कन्या कंस के हांथ से छूट गई और आकाश में जाते समय बोली, ” कंस तुझे मारने वाला कहीं पैदा हो चुका है।” यह कहते ही वह कन्या आकाश में अदृश्य हो गयी। वही कन्या बाद में विंध्य क्षेत्र में चली गयी। और “माँ विन्ध्यवासिनी” के रूप में प्रसिद्ध हुई। देवताओं ने बाद में विनती की कि वह फिर से स्वर्ग में वापस आ जाएं लेकिन माता जी ने विन्ध्य क्षेत्र में ही रहने की इच्छा व्यक्त की। और तबसे माँ विन्ध्यवासनी जी विन्ध्य क्षेत्र में जाग्रत अवस्था में विराजमान हैं। वह यशोदा और नंदबाबा की पुत्री के रूप में पृथ्वी पर आयी थी इसलिए उन्हें “नंदजा” (नंद बाबा की पुत्री) भी कहा जाता है। इस रिश्ते में वह कृष्ण की बहन भी हैं।

माँ विंध्यवासिनी मन्दिर

मिर्जापुर जिले के विन्ध्याचल धाम में जब दर्शनार्थी आते हैं तब सबसे पहले वह विन्ध्य क्षेत्र में मंदिर के किनारे से प्रवाहित होने वाली पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं। उसके बाद प्रसाद लेकर वह विन्ध्यवासिनी माता के दरबार में पहुंचते हैं। यहाँ पर माता विन्ध्यवासिनी माँ महालक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं।

यहाँ पर माँ विन्ध्यवासिनी के दर्शन के बाद दर्शनार्थी को दो और मंदिर में जाते हैं। एक “काली खोह मंदिर” और दूसरा माँ अष्टभुजी का मंदिर।

काली खोह मंदिर

माँ विन्ध्यवासिनी मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर काली खोह मंदिर है। दुर्गा शप्तसती में वर्णित माँ काली ही यहाँ पर “महाकाली” के रूप में विराजमान है। दुर्गा शप्तसती में वर्णित है कि “रक्तबीज” नामक राक्षस ने जब देवताओं को भारी कष्ट पहुँचाया तब देवताओं की विनती से माता काली ने रक्तबीज का वध किया था। रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि जहाँ भी उसका रक्त गिरेगा वहीं पर नये राक्षसों की उत्पत्ति हो जाएगी। इसी कारण माता महाकाली ने उसका वध करते समय अपना मुँह ऊपर करके उसका सारा रक्त अपने मुँह में लेकर रक्तपान किया था ताकि उसके रक्त की एक बूंद भी पृथ्वी पर न गिर सके। इसी कारण यहाँ पर माता महाकली जी प्रतिमा खेचरी (मुँह ऊपर की ओर) मुद्रा में है।

अष्टभुजी माता का मन्दिर

यह मन्दिर भी वहीं विंध्याचल में ही है। यहाँ पर माँ अष्टभुजी एक गुफा मंदिर में विराजमान है। माता जी की प्रतिमा आठ भुजाओं वाली है, इसलिए यहाँ पर माता जी “अष्टभुजा माता” के नाम से प्रसिद्ध हैं। अष्टभुजी माँ , महासरस्वती जी का रूप हैं। जो एक गुफा मंदिर में विराजमान है। यहाँ गुफा में दर्शनार्थियों को कोई आने जाने में परेशानी न हो इसलिए लाइट की व्यवस्था की गई है।

मान्यता है कि माँ विन्ध्यवासिनी के दर्शन के बाद काली खोह मंदिर व अष्टभुजी माता के मंदिर में दर्शन करने पर ही यहाँ की त्रिकोण परिक्रमा पूरी होती है। और यहीं भैरव बाबा का एक मंदिर है। यदि आप माँ विन्ध्यवासनी के धाम जाते हैं तो तीनों मंदिरों में दर्शन करने के बाद “भैरव बाबा” मंदिर जाना न भूलें।

सीता कुण्ड

जब आप विन्ध्याचल आते हैं तो इस त्रिकोणीय यात्रा में आप एक छोटी सी पद यात्रा और जोड़ सकते हैं, वह है सीता कुण्ड । कहा जाता है कि वनवास से आने के बाद अपने पूर्वजों को पिण्ड दान के लिए गया जाते समय यहीं पर राम सीता रुके थे। सीता को प्यास लगी तब सीता जी ने ही इस कुण्ड की स्थापना की और कुण्ड का पानी पीकर अपनी प्यास बुझायी थी। यह कुण्ड अष्टभुजी माता के मंदिर के पीछे कुछ दूरी पर है जहाँ जाने के लिए पैदल ही जा सकते हैं। दर्शनार्थी यहाँ पर कुण्ड का पानी पीते हैं। यहीं सीता कुण्ड के पास में ही एक शिवलिंग भी स्थापित है।

माँ विंध्यवासनी कब जाएँ

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के विन्ध्याचल में बसा माँ विन्ध्यवासनी धाम में भक्तों का आगमन वर्ष भर रहता है। चैत्र नवरात्रि व शारदीय नवरात्रि के समय यहाँ पर आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है।

विन्ध्याचल कैसे जाएँ

विन्ध्याचल रेल व बस मार्ग से जुड़ा है। निकटतम रेलवे-स्टेशन विन्ध्याचल है, जहाँ से आप माता जी के मंदिर जा सकते हैं। प्रयागराज व वाराणसी से बसें भी विन्ध्याचल जाती हैं, आप बस से भी विन्ध्याचल जा सकते हैं। यदि आपको विन्ध्याचल जाने वाली बसें नहीं मिलती हैं तो मिर्जापुर जाने वाली बस से भी यात्रा कर सकते हैं। मिर्जापुर से विन्ध्याचल की दूरी लगभग 7 किलोमीटर है , जो आप वहाँ की लोकल बस या टैक्सी से विन्ध्याचल तक सफर तय कर सकते हैं।

यदि आप एरोप्लेन से जाना चाहते हैं तो निकटतम एयरपोर्ट “लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा” वाराणसी है। इसे “बाबतपुर हवाई अड्डा” भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त बमरौली एयरपोर्ट प्रयागराज से भी विन्ध्याचल पहुँचा जा सकता है।मिर्जापुर से विन्ध्याचल की दूरी लगभग 7 किलोमीटर है। प्रयागराज से विन्ध्याचल की दूरी लगभग 82 किलोमीटर है। वाराणसी से विन्ध्याचल की दूरी लगभग 84-85 किलोमीटर है।

ऐसे ही जानकारी पाने के लिए हमें फाॅलो करें।

आपकी यात्रा शुभ हो।
आपका सफ़र बने सुहाना सफ़र
यह भी पढ़ें-

माँ पूर्णागिरि मन्दिर टनकपुर, जहाँ पूरी होती है कामना ।

आरती- जय अम्बे गौरी।

माँ जगदम्बा जी की आरती ।

महात्मा गाँधी ने साबरमती आश्रम क्यों छोड़ा ।

कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर मथुरा ।

बड़े हनुमान जी मन्दिर प्रयागराज

माँ गंगा पहुँची हनुमान मन्दिर

बाबा बैद्यनाथ धाम, जहाँ पूरी होती है कामना।

डिस्कलेमर

यहाँ पर दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। हमारी वेबसाइट aksuhanasafar.com इन मान्यताओं की पुष्टि नहीं करती। कृपया अमल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *