Ma Purnagiri माँ पूर्णागिरि मन्दिर टनकपुर
भारत में उत्तराखण्ड की वादियों में एक मन्दिर ऐसा भी है जहाँ एक अंग्रेज और पर्यावरण प्रेमी जिम कार्बेट को दिखा था प्रकाश पुंज। यही नहीं इस चमत्कारी मंदिर में आए हुए दर्शनार्थियों को मिलती है असीम शांती और अलौकिक अध्यात्म शक्ति और कामना होती है पूर्ण। तभी तो माता जी के इस मन्दिर का नाम पड़ा “माँ पूर्णागिरि” मन्दिर।आइए अब बताते हैं विस्तार से।
जब आप उत्तराखण्ड जाते हैं तो वो उत्तराखण्ड की वादियां ही है जो आपको मन-मोहित करती हैं। यहाँ के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाने वाले चीड़, देवदार, साइप्रस जैसे पेड़ और हरियाली प्रदान करते वो सुंदर-सुंदर बुग्याल आपके सफर को और रोमांच प्रदान करते हैं। ऊँचाई से गिरते झरने तो अलग से छटा बिखेरते हैं।
इसी उत्तराखण्ड की मनोरम वादियों में बना है “माँ पूर्णागिरि मन्दिर” जहाँ वर्ष भर दर्शनार्थियों का आना लगा रहता है। 17 वीं सदी में सदी में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी उत्तराखण्ड में आए थे। उन दिनों में उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में चंद वंश का शासन था। व्यापारी चंद्र तिवारी भी यहाँ पर चंद वंशी राजा के यहाँ ठहरे हुए थे। कहा जाता है कि वह राजा कोई और नहीं बल्कि राजा ज्ञान चंद ही थे। इन्ही राजा ज्ञान चंद के यहाँ व्यापारी चंद्र तिवारी रुके हुए थे।
एक रात व्यापारी चंद्र तिवारी को स्वप्न हुआ। उसने स्वप्न में माता दुर्गा जी के दर्शन हुए और उसे माता जी की शक्ति का अहसास हुआ।अगले दिन उसने यह स्वप्न राजा ज्ञान चंद्र को बताया और यहीं से इस मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और एक दिव्य मन्दिर बना।
यह मन्दिर उत्तराखण्ड के चम्पावत जिला में टनकपुर के पास हिमालय की गोद में बना है। टनकपुर से लगभग 19-20 किमी दूर अन्नपूर्णा चोटी पर यह मन्दिर बना है।
मान्यता है कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, तब उन्होंने सभी को निमंत्रण दिया किंतु शिव जी को निमंत्रण नहीं दिया। परंतु शिव जी की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री ‘सती जी’ ने शिव जी से उस याज्ञनिक अनुष्ठान में शामिल होने की जिद की । आखिर में शिव जी ने सती जी की बात मानते हुए उस अनुष्ठान में सती जी के साथ शामिल हुए। परंतु वहाँ पर शिव जी का उचित सम्मान न देखकर सती जी को काफी मानसिक ठेस पहुँची। और सती ने अपनी योगाग्नि से स्वयं को भष्म कल लिया । तब शोक और क्रोध से भरे हुए शिव जी ने सती जी शरीर लेकर आकाश में विचरण करने लगे। कहा जाता है तब भगवान विष्णु ने सती के मृत शरीर को चक्र से टुकड़ों में काट दिया। सती जी के शरीर के टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ पर देवी जी के शक्तिपीठ स्थापित किए गए।
सती जी की नाभि यहीं पर अर्थात उत्तराखण्ड के चम्पावत जिला में टनकपुर के पास अन्नपूर्णा शिखर पर गिरी थी। इसलिए यहाँ पर यह शक्तिपीठ बना।
माता जी के इस मन्दिर को पूर्णागिरि क्यों कहा जाता है
आइए आपको बताते हैं कि माता दुर्गा जी के इस मन्दिर को “पूर्णागिरि” क्यों कहा जाता है ? ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर जो भी कोई भक्त अपने सच्चे मन से मुराद माँगता है, वह पूर्ण अवश्य होती है। इसलिए “पूर्ण” और “गिरि” अर्थात पर्वत। इन्ही दो शब्दों को जोड़कर “पूर्णागिरि” शब्द बना। अर्थात कामना को “पूर्ण” करने वाली माँ जिनका गिरि (पर्वत) पर निवास है, वही ” माँ पूर्णागिरि” हैं। एक और मान्यता है कि यहाँ पर भक्तों को ‘पूण्य” की प्राप्ति होती है इसीलिए इसका नाम “पूण्यागिरि” पड़ा। बाद में यही पूण्यागिरि आगे चलकर “पूर्णागिरि” हो गया।
ऐसे दिखा प्रकाश पुंज
जिम कार्बेट जिन्हे भारत में पर्यावरण प्रेमी के रूप में जाना जाता है, भारतीय रेलवे में उन्होंने सर्विस की। वह एक पर्यावरण प्रेमी ही नहीं कुशल शिकारी भी थे। वो शिकार करने में इतना कुशल थे कि यदि कहीं भी नर-भक्षी बाघ होता जिससे अन्य शिकारी भी खुद को असुरक्षित महसूस करते तो जिम कार्बेट को ही शिकार के लिए बुलाया जाता था। यहाँ एक बात और बता दें कि जिम कार्बेट ने अपना काफी समय उत्तराखण्ड के नैनीताल जिला में ही बिताया। इसी क्रम में एक बार नर-भक्षी बाघ/बाघिन का खौफ चम्पावत जिले में फैला हुआ था। तब उसे मारने के लिए जिम कार्बेट को चुना गया। जिम कार्बेट उसका शिकार करने लिए पहाड़ी जंगलों में घूम रहे थे। रात्रि का समय था तभी अचानक जिम कार्बेट को तीन प्रकाश पुंज दिखाई दिए जो एक पास मे ही थे परंतु वह स्थिर न होकर एक दूसरे के बीच स्थान बदल रहे थे। जिम कार्बेट ने पहले इसे कोई ब्रह्माण्डीय घटना माना, परंतु बाद में जब उन्होंने इस घटना के बारे में कुछ लोगों को बताया तो यह बात सामने आयी कि यहीं पर माता जी का शक्तिपीठ है। और माता जी अपनी शक्ति का आभास समय समय पर लोगों को कराती रहती हैं। यह एक दिव्य पवित्र धाम है, जहाँ माता जी हमेशा अपने भक्तों के कल्याण के लिए तत्पर रहती हैं।
झूठा मन्दिर
माँ पूर्णागिरि मन्दिर के बारे में एक और कहानी प्रचलित है कि काफी समय पहले एक सेठ हुआ करते थे, जिनके कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने यहीं पर माता जी से प्रार्थना की थी कि उन्हे पुत्र की प्राप्ति हो। और जब पुत्र होगा तब वह एक सोने का मन्दिर बनवाकर माता जी को अर्पित करेंगे। कहा जाता है कि इसी क्रम में उस सेंठ को पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन सेंठ को लालच आ गया और उसने सोने के स्थान पर ताँबे का मंदिर बनवाकर उस पर सोने की पाॅलिश लगवा दी। परंतु जब वह इसे लेकर माता जी को अर्पित करने जा रहा था, तो पहाड़ पर चढ़ते समय ‘टुन्नास’ नामक स्थान पर मन्दिर को रखकर अपने नौकरों के साथ विश्राम करने लगा। विश्राम करने के बाद जब मंदिर को उठाने की कोशिश की गयी तो मंदिर न उठा । सेंठ समझ गया। उसने माता पूर्णागिरि देवी जी से क्षमा मांगी। तभी से यहाँ टुन्नास पर यह ताम्र निर्मित मन्दिर स्थित है। और इसे “झूठा मंदिर” नाम से जाना जाता है।
माँ पूर्णागिरि मन्दिर
अब आते हैं मुख्य टाॅपिक पर। माँ पूर्णागिरि मन्दिर उत्तराखण्ड के चम्पावत जिला में अन्नपूर्णा शिखर पर स्थित है। इन्हे “पुण्यागिरि” भी कहा जाता है। क्योंकि माना जाता है कि यहाँ दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इन्हे “दुर्गा माता” के नाम से भी जाना जाता है।
यहाँ जब आप आते हैं तो पहले खोला (पहाड़ पर) तक वाहन आने की अनुमति है। मन्दिर जाने के लिए असली चढ़ाई तब प्रारम्भ होती है जब आप पहले खोला पर अपनी कार/टैक्सी/बाइक से उतरकर मंदिर जाने के लिए अगला सफर तय करते हैं। यहाँ से चढ़ाई लगभग 3 किलोमीटर है। जबकि कुल चढ़ाई लगभग 7 किलोमीटर है।
पहले खोला से जैसे ही आप आगे बढ़ेंगे सबसे पहले बाबा भैरवनाथ का मन्दिर है। माता जी के मन्दिर में जाने से पहले बाबा भैरव नाथ के दरबार में हाजिरी लगानी पड़ती है। इसके बाद “हनुमान जी” और “माता काली” का मंदिर भी माता पूर्णागिर के मार्ग में पड़ते हैं। इसी मार्ग पर जब आप टुन्नास पर पहुँचेंगे तब पड़ेगा “झूठा मन्दिर”। चढ़ाई करते समय सबसे अंत में आता है माता पूर्णागिरि का मन्दिर। सुंदर प्रतिमा के साथ सजा यह मन्दिर अपने आप में यह अद्भुत है। मन्दिर के पास में ही है एक छोटा सा होल(चट्टान में गहरा छिद्र) जो काफी गहरा है । यही है वह नाभि जो शिव ताण्डव के समय सती जी की गिरी थी।
माता जी की सच्चे मन से पूजा करने वाले हर भक्त की कामना पूरी अवश्य होती है।क्योंकि माता जी कभी अपने भक्त को निराश नहीं करती।
माता पूर्णागिर देवी के दर्शन के बाद दर्शनार्थियों के पर्वत से नीचे उतरने का क्रम शुरू होता है।
शारदा नदी
शारदा नदी को “काली नदी” के नाम से भी जाना जाता है। स्कन्दपुराण में शारदा नदी को “श्यामा” नदी भी कहा गया है। शारदा नदी उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिला में “लिपुलेख” के पास “कालापानी” नामक स्थान से निकलती है। पिथौरागढ़ से अपने उद्गम से पूर्णागिरि तक यह नदी पहाड़ों पर ही प्रवाहित होती है। यहीं पूर्णागिर में ही यह नदी पहाड़ से नीचे उतरती है। और आगे बनबसा में शारदा डैम का निर्माण किया गया ।
सिद्ध बाबा नेपाल
माता जी के दर्शन करने के बाद फिर शुरू होती है आपकी एक छोटी सी विदेश यात्रा। जी हाँ ! ऐसी मान्यता है कि माता पूर्णागिरि देवी के दर्शन के बाद सिद्ध बाबा के दर्शन भी करना चाहिए। सिद्ध बाबा माता जी के ही भक्त थे। वैसे तो सिद्ध बाबा का मूल मन्दिर नेपाल के पाल्पा में है। जो पूर्णागिरि से काफी दूर है। पूर्णागिरि से निकटतम दूरी पर सिद्ध बाबा का मंदिर ब्रह्मदेव, नेपाल में है।
ब्रह्मदेव जाने के लिए टनकपुर वापस आना होता है। टनकपुर से ‘बनबसा’ जाना होता है। यहीं बनबसा में ही शारदा नदी से शारदा नहर निकाली गयी है। और बनबसा बाँध बनाया गया है। और यहीं बनबसा बाँध में बिजली भी बनायी जाती है। बनबसा बाँध से आगे बढ़ने पर भारत और नेपाल की सीमा है जहाँ पर दोनों देशों के अपने-अपने चेकपोस्ट बनाए गए हैं। इन चेकपोस्ट से गुजरने के बाद आप नेपाल में प्रवेश करते हैं। और शुरू होती है आपकी विदेश यात्रा। यह यात्रा ज्यादा लम्बी दूरी की न होकर बस छोटी सी दूरी तय करनी पड़ती है। अब आप नेपाल के “ब्रह्मदेव” जाने वाले मार्ग पर आगे बढ़ेंगे। आप देखेंगे कि यहाँ पर लगे हुए एक बोर्ड पर ब्रह्मदेव की दूरी 0.25 किलोमीटर (250 मीटर) लिखा है। ज्यादातर दर्शनार्थी पैदल ही चले जाते हैं। फिर भी यदि आप चाहें तो वहाँ की टैक्सी/बाइक ले सकते हैं। सिद्ध बाबा के दर्शन के बाद ही पूर्ण होती है आपकी पूर्णागिरि यात्रा। अगर आप चाहें तो वहाँ की लोकल मार्केट घूम सकते हैं। और फिर आप वापस आते हैं अपने देश भारत। इस प्रकार माता पूर्णागिरि मंदिर की यात्रा के साथ ही आप की एक छोटी सी विदेश यात्रा भी हो जाती है और वो भी बिना बीजा और पासपोर्ट के। हाँ नेपाल जाने के लिए आपको भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अपना पहचान-पत्र और कोविड वैक्सीन सर्टिफिकेट साथ में रखना आवश्यक है और जाँच अधिकारियों द्वारा माँगे जाने पर उन्हे डाक्यूमेंट दिखाना होगा।
माँ पूर्णागिरि कब जायँ
माँ पूर्णागिरि के दरबार में दर्शनार्थी वर्ष भर आते रहते हैं। चैत्र नवरात्रि व शारदीय नवरात्रि को यहाँ पर मेला लगता है। यह मेला 30-40 दिन तक रहता है।
कहाँ ठहरें
जब आप पूर्णागिरि जाते हैं तो वहाँ पर सबसे पहले रहने का ही प्रश्न आता है । यहाँ पर प्रसाद की काफी संख्या में दुकाने हैं। और यही दुकानदार यात्रियों की ठहरने के लिए धर्मशाला की व्यवस्था रखते हैं। इन धर्मशालाओं में जब आप ठहरते हैं तो सारी सुविधाएँ आपको निःशुल्क मिलती हैं। बस आपको प्रसाद उनकी दुकान से खरीदना होता है। और यहीं पर ‘फूड’ के लिए होटल भी मिल जाते हैं।
यदि आप अधिक सुविधाएँ चाहते हैं तो टनकपुर में कई होटल हैं जहाँ आप रुम ले सकते हैं।
कैसे जाएँ
पूर्णागिरि जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन “टनकपुर” है। जिला चम्पावत जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य में है। यदि आप बस से जाना चाहते हैं तो निकटतम बस स्टेशन “टनकपुर” ही है। टनकपुर से पूर्णागिरि जाने के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। टनकपुर से पूर्णागिरि की दूरी लगभग 19-20 किमी है।
वहीं यदि आप एरोप्लेन से जाना चाहते हैं तो निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर, नैनीताल है। पंतनगर से आप बस/टैक्सी से टनकपुर जा सकते हैं।
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