Krishna Janmabhoomi कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर
हम बात करने जा रहे है मथुरा के बारे मे, जहाँ श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था। वह मथुरा ही है जहाँ श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। भारत में उत्तर प्रदेश राज्य मे मथुरा ही वह जगह हैं जहाँ कृष्णावतार हुआ था। इसका उल्लेख पुराणों मे हैं। जहाँ भगवान कृष्ण का अवतार हुआ था, वहीं पर आज जो मन्दिर बना है, वह “कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर” के नाम से जाना जाता है। कृष्ण का जन्म मथुरा मे द्वापर युग मे हुआ था। इनके पिता वसुदेव वृष्णि वंश के राजा थे। और माँ देवकी थी।
कहा जाता है कि एक बार कृष्ण के मामा कंस को आकाशवाणी सुनाई दी थी। ”कंस तुझे देवकी का आठवाँ पुत्र मारेगा। ” कंस ने यह आकाश वाणी सुनने के बाद अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को मथुरा कारागार मे बंद कर दिया। कारागार मे जो भी संतान देवकी के होती थी वह कंस मार देता था। जब कृष्ण का जन्म मथुरा कारागार मे हुआ। उस समय भाद्रपद का महीना कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। रोहिणी नक्षत्र था और दिन बुधवार था। घोर अँधेरी रात थी। मध्य रात्रि को कृष्ण का जन्म हुआ था।
कृष्ण के जन्म के समय कारागार के पहरेदार सो गए। वसुदेव देवकी की हथकड़ी बेड़ी खुल गयी। और कृष्ण का अवतार हुआ। अपने चतुर्भुज अवतार मे वह वसुदेव देवकी के समक्ष प्रकट हुए। वही जेल जहाँ पर कृष्ण जी का अवतार हुआ। वहीँ पर आज मन्दिर बना है। यह मन्दिर “कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर” के नाम से प्रसिद्ध है। कंस का यहीं पर जब कारागार था तब यमुना नदी इसी कारागार के पास से होकर बहती थी। आज यमुना नदी यहाँ से लगभग 2-3 किलोमीटर दूर है। जब कृष्ण जी का अवतार हुआ था तो कृष्ण जी ने वसुदेव से कहा था कि गोकुल मे यशोदा के आज ही कन्या हुई है, उसे यहाँ ले आओ और हमें वहाँ यशोदा के पास पहुँचा दो। वसुदेव कृष्ण भगवान को लेकर गोकुल मे जाने लगे। जैसे ही वसुदेव कृष्ण को लेकर चलने को तैयार हुए। कारागार के द्वार अपने आप खुल गए। अब वसुदेव कृष्ण को लेकर गोकुल को चले।
विश्राम घाट
जब वे गोकुल को चले तो अब उन्हें यमुना नदी को पार करना था। वे जिस स्थान से यमुना को पार करने के लिए नदी मे उतरे थे उसी जगह पर वर्तमान में घाट बना है। यही घाट विश्राम घाट के नाम से जाना जाता है। आइए पहले देखते हैं कि वसुदेव जी ने यमुना नदी कैसे पार किया। और फिर जानेंगे कि इस घाट का नाम “विश्राम घाट” क्यों पड़ा?
अब वसुदेव जी यमुना नदी मे कृष्ण को लेकर उतरे। तो यमुना का जलस्तर बढ़ने लगा। वासुदेव ने कृष्ण को अपने सर पर डलिया में बिठाया और आगे बढ़ने लगे। लेकिन यमुना नदी कर जल स्तर बढ़ने लगा और बढ़कर उनके नाक तक आ गया। तभी कान्हा ने अपना एक हाथ और एक पैर नीचे कि तरफ लटका दिया। कृष्ण का स्पर्श मिलते ही यमुना नदी कर जलस्तर घटने लगा।
यहाँ पर एक रोचक कथा विश्राम घाट से जुडी है। कहा जाता हैं कि सतयुग में यमुना जी ने भगवान विष्णु जी की तपस्या की थी। तब भगवान विष्णु जी प्रकट हुए थे और उन्होने यमुना जी से वरदान माँगने को कहा। तब यमुना जी ने उनको पति स्वरुप में माँगा। तब विष्णु जी ने कहा था कि “जब वह द्वापर युग में कृष्णावतार लेंगे तब प्रथम मिलन तुम्हीं से होगा।” अब आप मथुरा – गोकुल क्षेत्र से प्रवाहित हों। तब यमुना जी मथुरा आयीं। यही कारण था कि जब वसुदेव जी ने कृष्ण भगवान को डलिया में बिठाकर नदी में उतरते हैं तो पहले यमुना नदी का जलस्तर बढ़ता है, और बाद में कृष्ण कन्हैया का स्पर्श पाने के बाद जलस्तर घट जाता है।
अब यमुना जी ने वासुदेव जी को आगे जाने जाने कर रास्ता दे दिया। यमुना नदी का पानी अब वासुदेव जी के घुटनों तक था।
चलिए अब बताते हैं कि इस घाट का नाम “विश्राम घाट” क्यों पड़ा ? मान्यता है कि जब विष्णु भगवान ने यमुना जी से अपने कृष्णावतार में मिलने की बात कही, तो यमुना जी को इस स्थान पर कृष्णावतार के लिए लाखों वर्ष तक विश्राम (यहाँ पर विश्राम का अर्थ प्रतीक्षा से है ) करना पड़ा। इसी कारण इस घाट का नाम “विश्राम घाट” पड़ा। एक और रोचक कथा यहाँ पर आती है। मान्यता यह भी है कि जब कृष्ण भगवान ने कंस का वध किया था, तब कंस वध के बाद कृष्ण जी ने इसी घाट के पास बैठकर विश्राम किया था। इसी कारण इस घाट का नाम विश्राम घाट पड़ा। चलिए अब आते हैं अपने मुख्य टाॅपिक पर।
तो अब वसुदेव जी यमुना नदी को पार कर गोकुल पहुँचे।
नन्द भवन
अब वसुदेव गोकुल पहुँचे भगवान कान्हा को लेकर। गोकुल मे वसुदेव नन्द बाबा के घर गए और वहाँ माँ यशोदा के पास मे कान्हा को लिटाकर उस कन्या को मथुरा कारागार मे ले आये।
आज उसी जगह पर जो भवन बना है, वह “नन्द भवन” के नाम से जाना जाता है। इसी नन्द भवन मे भगवान कृष्ण – कन्हैया कर बचपन बीता। यह नन्द भवन को अंदर से मन्दिर कर रूप दे दिया गया है। इस भवन में कान्हा ने जो लीलाएं की हैं, उन्ही लीलाओं को नन्दभवन में दर्शाया गया है। जैसे – जहाँ माँ यशोदा कान्हा के साथ सोती थी आज वहाँ पर “श्रुति गृह” बना हुआ है।
प्रेम मन्दिर वृन्दावन
प्रेम मन्दिर वृन्दावन में स्थित है। इस मन्दिर का शिलान्यास जगद्गरू कृपालु जी महाराज द्वारा 2001 में किया गया था। मन्दिर राधा-कृष्ण को समर्पित है। मन्दिर को राधा-कृष्ण की झांकियों से सजाया गया है।
मन्दिर में सफेद इटालियन संगमरमर का प्रयोग किया गया है। मन्दिर की सुंदरता देखते ही बनती है। जैसा कि नाम है प्रेम मन्दिर ! बिल्कुल अपने नाम को अनुसरण करते इस मन्दिर में राधा-कृष्ण के प्रेम को सजीवता दर्शाया गया है। यहाँ राधा-कृष्ण के साथ-साथ गोपिकाओं और ग्वाल-बालों की झांकियों में सुन्दरता को निखारा गया है।
कालियाघाट वृन्दावन
कालियाघाट वृन्दावन मे ही है। यहीं पर कभी यमुना नदी मे कालिया नाग रहता था। वह इतना जहरीला था कि उसके जहर से यंहाँ पर यमुना नदी का पानी भी जहरीला हों गया था। एक दिन भगवान कृष्ण यहाँ पर पहुंचे तो खेल खेल मे वे यमुना नदी मे कूद गए और कालिया नाग के फन पर खड़े होकर बंसी बजाने लगे। अंततः वह नाग वहाँ से चला गया।
आज यही घाट कालिया घाट के नाम से जाना जाता है।
निधिवन
वृन्दावन मे ही निधिवन है। निधि का अर्थ होता है खजाना। अर्थात यहाँ पर वो दिव्य खजाना या दिव्य निधि है। इसी कारण यह तुलसी का वन ”निधि वन” के नाम से जाना गया।
जब भी आप वृन्दावन जाये तो निधिवन भी जाये। मान्यता है कि यही वह जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण गोपियों संग बंशी बजाते और रास किया करते थे।
मान्यता है कि कृष्ण भगवान आज भी यहाँ पर प्रतिरात को रास करने आते हैं। जी हाँ ! कहा जाता है कि निधि वन मे तुलसी के पेड़ जो है वो गोपिकाओ के स्वरुप है। जब रात मे कृष्ण यहाँ आते है तब यही तुलसी के पेड़ कि लताये गोपिका बन जाती है। और भगवान कृष्ण रास करते है। एक बात और है, यह भी कहा जाता है कि शाम को सूर्य अस्त होने के बाद इस एरिया मे कोई नहीं रुकता। यहाँ तक कि जानवर, पक्षी भी शाम होते ही चले जाते है। इसीलिए निधिवन के चारो ओर बॉउंड्री वाल बनवा दी गयी है।
बाँके बिहारी मन्दिर
जब भी मथुरा जाये तो यहाँ जाना भी ना भूले। बाँके बिहारी मन्दिर निधिवन के पास में ही बना है। यहाँ पर कभी तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास बैठ कर भगवान बिहारी जी को भजन सुनाया करते थे। कहा जाता है कि स्वामी हरिदास ने अपने बाँके बिहारी भगवान से यह वरदान लिया था कि जब वह भजन गायें तो बाँके बिहारी जी उनके भजन सुनने जरूर आयें। यही कारण था कि जब वह भजन गाते थे, तो बाँके बिहारी उनके भजन सुनने आते थे।
एक बार तानसेन से अपने गुरु स्वामी हरिदास कि प्रसंसा अकबर को सुना रहे थे। प्रसंसा सुनने के बाद अकबर भी यहाँ पर स्वामी हरिदास जी से मिलने आये थे। आज यहाँ पर ”बाँकेबिहारी” जी का मन्दिर है।
गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन पर्वत है जिसे कहा जाता कि कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। जब एक बार वह गाय चराने अपने ग्वाल बालो के साथ गए थे। तभी वर्षा होने लगी, जिससे बचने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और उसी पर्वत के नीचे सारे ग्वाल बाल और गाये बछड़े खड़े हों गये थे। इस प्रकार कृष्ण ने वर्षा से अपनी और ग्वाल बालो और गाय बछड़ों की रक्षा की थी।
इसके अतिरिक्त यहाँ पर और भी कई मन्दिर है। जहाँ पर आप जाकर कृष्ण भक्ति रस मे डूब सकते है।
अभी हाल ही मे यहाँ 2014 मे “चंद्रोदय मन्दिर” का शिलान्यास तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा किया गया था। यह मन्दिर विश्व कर सबसे ऊँचा मन्दिर होगा। लगभग 700 फीट ऊँचा। मन्दिर अभी निर्माणाधीन है।
मथुरा कब जाये
मथुरा भारत मे उत्तर प्रदेश राज्य मे है, जो प्लेन एरिया मे है। अतः आप कभी भी जा सकते है। यहाँ पर कृष्ण जन्माष्टमी के समय काफी संख्या मे लोग आते है।
कैसे जाये
मथुरा भारत मे सभी राज्यों से सड़क रेल और वायु मार्ग से जुडा है।
निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा ही है। आप सड़क मार्ग से भी जा सकते है। बस स्टैंड भी मथुरा मे है।
आप एरोप्लेन से भी जा सकते हैं निकटतम एयरपोर्ट आगरा में हैं।
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डिस्क्लेमर
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