Gola Gokarnath: गोला गोकर्णनाथ
Wonderful Shivling in Gola Gokarnath: गोला गोकर्णनाथ में है अद्भुत शिवलिंग
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में गोला गोकर्णनाथ नाथ मन्दिर में है अद्भुत शिवलिंग। यहाँ शंकर जी का एक मन्दिर एक ऐसा मन्दिर है जहाँ रावण ने शिवलिंग को अपने अँगूठे से नीचे दबा दिया था। गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी भी कहा जाता है। यहीं पर वह मन्दिर है जहाँ पर रखे शिवलिंग को रावण उठा भी न पाया।
आपने काशी (वाराणसी) का नाम तो खूब ही सुना होगा जहाँ ‘काशी विश्वनाथ’ विराजमान है जो शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। लेकिन हम आपको आज बताएंगे “छोटी काशी” के बारे जहाँ शिव जी अपने मन से विराजमान हो गये थे और रावण के काफी प्रयास के बाद भी उन्होंने छोटी काशी को नहीं छोड़ा। यही छोटी काशी आज “गोला गोकर्णनाथ” के नाम से जानी जाती है।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिला में लखीमपुर से 35 किलोमीटर दूर गोला गोकर्णनाथ एक शहर है। यहीं पर शंकर जी का एक मन्दिर है।जहाँ काफी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।
वह शिवलिंग जिसे रावण लंका ले जाना चाहता था
शंकर जी के इस मन्दिर के बारे में मान्यता है कि शिव जी (भोले नाथ) का परम भक्त और असुर राज रावण जो लंका का राजा भी था, ने एक बार शिव जी (भोलेनाथ) की तपस्या की । रावण की तपस्या से शंकर जी प्रसन्न हो गये और वह रावण के सामने प्रकट हुए और रावण से वरदान माँगने को कहा। रावण ने शंकर जी से अपने साथ लंका ले जाने की कामना की। शंकर जी अपने भक्त रावण से वरदान माँगने का वचन पहले ही दे चुके थे, लेकिन लंका में उनका जाना भी आसान न था। देवतागण भी चिंता करने लगे। शंकर जी ने अपनी योगमाया से सब कुछ जानकर लंकापति रावण के सामने एक शर्त रखी। शंकर जी ने “एवमस्तु”कहते हुए रावण को एक शिवलिंग देते हुए कहा कि मैं लंका चलने के लिए तैयार हूँ, लेकिन मेरी शर्त यह है कि जहाँ भी मेरा पृथ्वी से स्पर्श हो जाएगा मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊँगा। रावण ने शर्त स्वीकार कर लिया। और भोलेनाथ का दिया हुआ शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला। रास्ते में उसे लघुशंका का आभास हुआ । लेकिन उसे वह शर्त भी याद थी कि शिवलिंग जहाँ भी पृथ्वी से स्पर्श करेगा वहीं वह स्थापित हो जाएगा। तभी उसे एक चरवाहा नजर आया। रावण ने उस चरवाहे को अपनी लघुशंका की बात बताते हुए कहा कि जब तक वह (रावण) वापस न आये तब तक वह (चरवाहा) शिवलिंग को हाँथ में रखे। जमीन पर किसी दशा में न रखे। चरवाहे ने बात मान ली, लेकिन, रावण के वापस आने में देर होने लगी। इधर वह शिवलिंग भारी होने लगा और इतना भारी होने लगा कि चरवाहा उसे अब अधिक समय तक हाँथ में रोक नहीं सकता था, अतः उसने शिवलिंग को नीचे पृथ्वी पर रख दिया। तभी रावण वहाँ पहुँचा। जब रावण ने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की लेकिन वह उठा न सका। अतः उसे क्रोध आ गया और उसने क्रोध में आकर उस शिवलिंग को अपने हाँथ के अँगूठे से दबा दिया। जिससे उस शिवलिंग में अँगूठे का निशान बन गया। आज भी इस शिवलिंग में अँगूठा दबाने का निशान बना हुआ।
कुछ इसी तरह की मान्यता पर आधारित कहानी देवघर, झारखण्ड के ज्योतिर्लिंग “बाबा वैद्यनाथ” धाम” के बारे में भी प्रचलित है।
बाबा भूतनाथ
जब रावण उस शिवलिंग को उठा न पाया तब क्रोधवश शिवलिंग को अंगूठे से दबाने के बाद वह उस चरवाहे को पकड़ने दौड़ा। लेकिन चरवाहे ने दौड़ लगा दी और सामने एक कुआँ था। वह चरवाहा उसी कुएँ में गिर गया। तब बाबा भोलेनाथ अर्थात शंकर जी ने उस चरवाहे को वरदान दिया कि अब तुम “भूतनाथ” के नाम से जाने जाओगे, और मेरे दर्शन करने के बाद मेरे भक्त तुम्हारे भी दर्शन करेंगे तभी उसे मेरे दर्शन का पूरा फल मिलेगा। आज भी “भूतनाथ” के मेले के समय दर्शनार्थी “बाबा गोकर्णनाथ” के दर्शन के बाद “भूतनाथ” अवश्य जाते हैं।
यहाँ पर आज एक कुआँ बना है जहाँ पर दर्शनार्थी बाबा भूतनाथ के दर्शन करने जाते है।
आज भी सावन में बाबा भूतनाथ का मेला लगता है। और दर्शनार्थी पहले भोलेनाथ अर्थात गोकर्णनाथ के मन्दिर जाते हैं उसके बाद वह भूतनाथ के धाम जाते हैं।
गोकर्णनाथ नाम क्यों पड़ा
मान्यता के अनुसार जब रावण ने शिवलिंग को अपने अँगूठा से दबा दिया तो वहाँ पर शिवलिंग दब गया। आज भी इस शिवलिंग में दबने (गहरा) का निशान है। जिसके कारण शिवलिंग का आकार गाय (गो) के कान (कर्ण) के आकार का हो गया। अतः यहाँ पर भोलेनाथ गो+कर्ण अर्थात “गोकर्णनाथ नाथ” के नाम से जाने गए।
आज यहाँ पर मन्दिर बना है। मान्यता है कि यह वही जगह है जहाँ पर चरवाहा ने शिवलिंग रखा था। और यह शिवलिंग भी वही है। और यहाँ पर शिवशंकर जी गोकर्णनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
बाबा गोकर्णनाथ के नाम पर ही इस शहर का नाम “गोला गोकर्णनाथ” पड़ा।
गोला गोकर्णनाथ मेला
गोला गोकर्णनाथ में मेला वर्ष में दो बार लगता है। एक चैत्र में लगता है जिसे “चैती का मेला” कहा जाता है। दूसरा मेला सावन में लगता है। सावन में यहाँ दर्शनार्थियों की काफी भीड़ हो जाती है।
सावन के प्रत्येक सोमवार को यहाँ काँवरियों की लम्बी लाइन लगती है। और सावन में शहर में भण्डारों का आयोजन भी होता है, जहाँ पर भक्त भण्डारे का भोजन/प्रसाद ग्रहण करते हैं। सावन में ही “भूतनाथ” का मेला लगता है। यहाँ पर दूरस्थ स्थानों/ अन्य प्रदेश से भी काफी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।
कब जाएँ
गोला गोकर्णनाथ मैदानी क्षेत्र में आता है अतः कभी भी आप जा सकते हैं। लेकिन सावन के महीने में यहाँ आने का महत्व बढ़ जाता है।
कैसे जाएँ
गोला गोकर्णनाथ रेलमार्ग व सड़क मार्ग से भारत के सभी प्रदेशों से जुड़ा है। लखनऊ- मैलानी रेल मार्ग पर “गोला गोकर्णनाथ” रेलवे-स्टेशन है। आप लखनऊ से ट्रेन से गोला गोकर्णनाथ जा सकते हैं। गोला गोकर्णनाथ रेलवे-स्टेशन का कोड GK है।
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम द्वारा संचालित बसें भी यहाँ आती हैं। लखनऊ, बरेली व दिल्ली से बस सेवा संचालित होती है। मन्दिर से 300-400 मीटर की दूरी पर रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन हैं।
अगर आप हवाई जहाज से यहाँ आना चाहते हैं तो यहाँ का निकटम हवाई अड्डा “चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डा” लखनऊ है। पहले इसका नाम “अमौसी हवाई अड्डा” था। यहाँ से ट्रेन या सड़क मार्ग (बस/टैक्सी) से गोला गोकर्णनाथ जा सकते हैं। लखनऊ से यहाँ की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है। और लखीमपुर से 35 किलोमीटर दूरी है।
कहाँ पर रुके
उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर – खीरी में गोला गोकर्णनाथ एक तहसील और नगर पालिका भी है। रुकने के लिए यहाँ कई होटल और धर्मशाला है। आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल या धर्मशाला में रुक सकते हैं। यहाँ रेलवे स्टेशन और मन्दिर के पास (कुछ दूरी पर) आपको होटल या धर्मशाला मिल जाएँगे।
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डिस्क्लेमर
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