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Baba baidyanath dham: बाबा बैद्यनाथ धाम

जहाँ पूरी होती है मनोकामना

जी हाँ ! बिल्कुल, जो ऊपर लाइन आपने पढ़ी वो इस मन्दिर के बारे में ही है। बाबा बैद्यनाथ धाम जहाँ पूरी होती है मनोकामना। भारत मे झारखण्ड राज्य मे बसा यह बाबा बैद्यनाथ धाम ही वो धाम है जहाँ पर सच्चे मन से माँगी गयी हर कामना पूरी होती है। तभी तो इसे “मनोकामना शिवलिंग” भी कहा जाता है। चलिए अब जानते हैं विस्तार से।

भारत में झारखण्ड राज्य के देवघर में बाबा बैद्यनाथ का मन्दिर है। यहाँ हजारों की संख्या में भक्तों का आना लगा रहता है। बाबा बैजनाथ का मन्दिर उन बारह ज्योतिर्लिंगों मे से एक है, जो सम्पूर्ण भारत मे स्थित है। वैसे तो सभी ज्योतिर्लिंग की महिमा निराली है। हर ज्योतिर्लिंग स्वयं मे खास है। बाबा बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग स्वयं मे एक अलग अनुभूति देता है। यहाँ के विषय मे एक कथा प्रचलित है। रावण शिव जी का अनन्य भक्त था। रावण अपने समय का प्रकांड विद्वान भी था। कहते हैं वह शिव जी का इतना बड़ा भक्त था कि उसने अपने शीश भी शिव जी को अर्पित किए थे। तभी तो वह दशानन भी कहलाता था। जिसके दस हैं आनन अर्थात दसानन अर्थात रावण । इसी रावण के बारे मे ही एक कथा प्रचलित है।

बाबा बैद्यनाथ धाम

कहा जाता है, कि रावण ने कभी शिव जी की तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने रावण को दर्शन दिया और उन्होंने रावण से वरदान माँगने को कहा। तो रावण ने शिव जी से लंका चलने को कहा। रावण ने कहा, “हे प्रभु मेरी एक इच्छा है कि आप मेरे साथ लंका चले जहाँ मै आपकी सेवा कर सकूँ। ” रावण की भावना समझकर भगवान शंकर ने एवमस्तु का वरदान दे दिया। भगवान शंकर जानते थे कि लंका जाना उनके लिए उचित नहीं है। दूसरी बात यह भी कि वह कैलाश पर्वत को छोड़कर भी नहीं जाना चाहते थे। उधर सारे देवतावाओ को भी चिंता होने लगी कि यदि शिव जी कैलाश छोड़कर लंका चले गए तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये देवता भी नहीं चाहते थे कि भोले नाथ लंका जाये। भगवान भोले नाथ ने सभी की मनःस्थित को क्षण भर मे समझ लिया और वो सारे देवताओं की मनः स्थिति भी जान गए। एक बात और कि भोले नाथ अपने भक्त रावण को निराश भी नहीं करना चाहते थे। अतः भोलेनाथ ने एक शर्त रखी। सब कुछ समझने वाले अंतर्यामी भोले नाथ ने एक “शिवलिंग” देते हुए रावण से कहा, मै आपके साथ चलने को तैयार हूँ, लेकिन मेरी शर्त यह है कि मैं जहाँ भी कहीं प्रथ्वी का स्पर्श पा जाउंगा वहीं पर रुक जाऊंगा। रावण ने भी शर्त स्वीकार कर ली।

अब रावण भी खुश होकर वह शिवलिंग लेकर लंका कि ओर चल दिया। यह सोंचकर कि अब भोले बाबा मेरी लंका मे ही रहेंगे।

बाबा-बैद्यनाथ-धाम

“भक्त शिव का चला, शिव को लंका मे बसाने के लिए….।”

लेकिन असुर राज रावण को रास्ते मे लघुशंका लग गयी। रावण को यह बात पहले से ही याद थी कि शिव जी को प्रथ्वी का स्पर्श नहीं कराना है। तभी रास्ते मे उसे एक ग्वाला दिखा। रावण ने उसे वह शिवलिंग देकर कहा कि जब तक वह लघुशंका से वापस ना आ जाये तब तक वह शिवलिंग ज़मीन पर नहीं रखेगा। रावण यह कहकर लघुशंका के लिए चल पड़ा। वहाँ उसे देर लग गयी। इधर प्रभु भोलेनाथ कि माया – अब वह शिवलिंग धीरे धीरे वजन होने लगा, और वह ग्वाला उस शिवलिंग का भार ज्यादा देर तक सहन नहीं सकता था। काफी देर प्रतीक्षा के बाद उसने थककर वह शिवलिंग को ज़मीन पर रख दिया। इधर जब रावण लघुशंका से वापस आया तो देखा कि शिवलिंग ज़मीन पर रखा हुआ है। वह समझ गया कि अब शिवलिंग को उठाना आसान नहीं है, परन्तु फिर भी उसने शिवलिंग को उठाने की कोशिश कि। लेकिन फिर भी शिवलिंग वह नहीं उठा सका। अब असुर राज का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह ग्वाला को मारने दौरा। लेकिन वह भाग गया। कहा जाता है कि ग्वाला के वेष स्वयं भगवान विष्णु थे। अब रावण ने फिर से शिवलिंग को उठाने कि कोशिश की, लेकिन वह उठा ना सका अंत मे वह वापस लंका आ गया।

इस प्रकार वह शिवलिंग झारखण्ड के देवघर मे आज बाबा बैद्यनाथ के नाम से विराजमान है। एक मतानुसार यह भी माना जाता है, वह व्यक्ति जो ग्वाला था, उसका नाम “बैजू” था। इसी आधार पर बाबा बैद्यनाथ को “बाबा बैजनाथ” भी कहा जाता है। बाबा बैजनाथ को रावण यहाँ तक लाया। या कहे बाबा बैद्यनाथ कि कहानी रावण से जुडी होने के कारण बाबा बैद्यनाथ को “रावणेश्वर” भी कहा जाता है।

मनोकामना शिवलिंग

एक बात और भी ! बाबा बैजनाथ के धाम जो भक्त जाते है, उनकी कामना बाबा भोले नाथ पूरी जरूर करते है। बस प्रार्थना सच्चे मन से की गयी हो। बाबा बैद्यनाथ धाम आने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता। बाबा बैजनाथ हर भक्त कि मनोकामना पूरी करते है, तभी तो उन्हें “मनोकामना शिवलिंग” भी कहते है। बारह ज्योतिर्लिंग मे एक बाबा बैद्यनाथ हीं है जिन्हे “मनोकामना शिवलिंग” भी कहते है।

पार्वती मन्दिर

यह मन्दिर उसी प्रांगण में है, जिस प्रांगण में बाबा बैजनाथ का मन्दिर है। पार्वती मन्दिर को शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ पर सती जी का हृदय गिरा था। शायद भारत में यह एक मात्र ऐसा मन्दिर है जहाँ शिव(ज्योतिर्लिंग – बाबा वैद्यनाथ) और शक्ति (शक्तिपीठ- पार्वती मन्दिर) एक ही प्रांगण में स्थापित है। इसी प्रांगण में और भी मन्दिर स्थित है।

शिवगंगा सरोवर

मान्यता है कि जब लघुशंका के बाद रावण को पानी की आवश्यकता हुई, परन्तु पानी न मिलने के कारण उसने यहीं पर मुष्टि प्रहार कर धरातल से पानी निकाला था। आज यह “शिवगंगा सरोवर” के नाम से जाना जाता है।

शिवगंगा सरोवर

कहा जाता है कि इस सरोवर से पानी कभी कम नहीं होता। बाबा बैजनाथ धाम जो भी दर्शनार्थी आते हैं, वे यहीं पर पहले स्नान करते हैं, उसके बाद वे बाबा बैद्यनाथ धाम जाते हैं।

वासुकीनाग मन्दिर

वासुकीनाग के विषय में मान्यता है कि यह नागों के राजा नागराज हैं। यही नागराज शिव जी के गले माला बनकर लिपटे रहते हैं, जो सर्वदा शिव जी के साथ रहते हैं। इन्हीं के विषय में मान्यता है कि समुद्र मन्थन के दौरान जहाँ देवताओं ने मदरान्चल पर्वत को मथानी के रूप में प्रयोग किया तो वहीं नागराज को रस्सी के रूप में प्रयोग किया। मान्यता है कि समुद्र मन्थन के बाद नागराज ने यहीं पर विश्राम किया था। इसी स्थान पर जो मन्दिर बना है, वह “वासुकीनाग” के नाम से जाना जाता है।

बाबा बैद्यनाथ जाने के बाद दर्शानार्थी वासुकीनाग मन्दिर भी जाते है। मान्यता है कि बाबा बैद्यनाथ के दर्शन तभी पूर्ण होते हैं जब दर्शनार्थी वासुकीनाग मन्दिर मे भी जाकर दर्शन करते है। वासुकीनाग मन्दिर कि दूरी देवघर से लगभग 45-46 किलोमीटर दूर दुमका में है।

त्रिकूट पर्वत और तपोवन

वासुकीनाग मन्दिर से कुछ किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत है। त्रिकूट पर्वत पर एक प्राचीन शिव जी का मन्दिर है। यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर तपोवन है कहा जाता है कि यहीं तपोवन में भगवान राम ने भगवान शिव की आराधना या तपस्या की थी।

कब जाएँ

बाबा बैद्यनाथ धाम आप कभी भी जा सकते है। लेकिन सावन के महीने मे यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों कि संख्या कई गुणा बढ़ जाती है।

कैसे जाएँ

भारत मे झारखण्ड राज्य में देवघर शहर में बसे बाबा बैद्यनाथ धाम जाने के लिए आपको झारखण्ड राज्य मे देवघर जाना होगा। देवघर भारत के सभी राज्यों से हवाई मार्ग, रेल मार्ग व सडक मार्ग से जुडा है। यदि आप ट्रेन से जाना चाहते है तो निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह है।

यद्यपि देवघर भी रेलवे स्टेशन है परन्तु वहाँ पर ट्रेन कम ही जाती है। अगर आपके यहाँ से देवघर ट्रेन जाती है तो आप देवघर स्टेशन भी जा सकते है। नहीं तो फिर आपको जसीडीह रेलवे स्टेशन आना होगा। जसीडीह से देवघर कि दूरी लगभग 7 किमी है। जहाँ से आप ऑटो या टैक्सी या बस से देवघर जा सकते है। यदि आप सड़क मार्ग से जाना चाहते है तो आप सड़क मार्ग से भी जा सकते है।

यदि आप एरोप्लेन से जाना चाहते हैं तो निकटतम एयरपोर्ट देवघर मे ही है।

कहाँ ठहरें

देवघर मे रुकने के लिए कई होटल और धर्मशाला है आप अपने बजट के अनुसार कहीं भी रुक सकते है।

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डिस्क्लेमर

यहाँ पर दी गयी जानकारी केवल हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर आधारित है। हमारी वेबसाइट aksuhanasafar.com इन तथ्यों की पुष्टि नहीं करती। कृपया अमल करने से पहले किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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